बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर -
गांधी जी की कार्य पद्धति साध्य और साधन
गांधीवाद एक पूर्णतया नैतिक दर्शन है और इसके अनुरूप ही उनकी कार्यपद्धति भी पूर्णतया नैतिक है। सत्य और अहिंसा पर आग्रह के साथ-साथ गांधीजी इस बात पर भी जोर देते हैं कि हमारे साधन साध्य के अनुरूप ही होने चाहिए। हमारा साध्य नैतिक हो, केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है; यह बात भी उतनी ही आवश्यक है कि हमारे साधन भी नैतिक हों। साधनों की अनैतिकता निश्चित रूप से साध्य की नैतिकता को नष्ट कर देती है। अतः श्रेष्ठ साध्य की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ साधनों को ही अपनाया जाना चाहिए। गांधीजी ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि आपको पवित्र साध्य के लिए उतने ही पवित्र साधन नहीं मिलते तो उस साध्य को ही छोड़ दो। स्वयं गांधीजी के शब्दों में, “साधन बीज है और साध्य वृक्ष। इसलिए जो सम्बन्ध बीज में है वही सम्बन्ध शासन और साध्य में है। मैं शैतान की उपासना करके ईश्वरोपासना का फल नहीं पा सकता।”
साधनों की पवित्रता का आग्रह करके गांधीजी ने राजनीति के आध्यात्मीकरण की ओर सबसे बड़ा कदम उठाया। उनके समय तक यह सामान्य धारणा प्रचलित थी कि राजनीति में सफलता ही सर्वप्रमुख है और सफलता प्राप्ति के लिए उचित-अनुचित सभी साधन अपनाये जा सकते हैं। फासिस्ट तथा साम्यवादी इस धारणा के प्रमुख प्रतिपादक रहे हैं कि 'साध्य ही साधनों का औचित्य है' (End justifies the means )। गांधीजी ने इसे अस्वीकार करते हुए यह धारणा व्यक्त की कि साधन साध्य के अनुरूप ही होने चाहिए। राजनीति में वह एक क्रान्तिकारी परिवर्तन था और इसे राजनीति की कला को गांधीजी की सबसे महत्वपूर्ण देन कहा जा सकता है। गांधीजी ने स्वयं अपने जीवन भर इस सिद्धान्त का पालन किया। उन्होंने अपने देश की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए भी कभी अनैतिक या हिंसात्मक साधनों का प्रयोग नहीं किया।
गांधीवादी पद्धति में व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर अत्यधिक बल दिया जाता है और इस दृष्टि से गांधीजी व्यक्ति का चरित्रवान होना आवश्यक मानते हैं। गांधीजी का विचार था कि मनुष्य की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याएँ मूल रूप में नैतिक समस्याएँ ही हैं और इनका समाधान भी नैतिक साधनों से ही किया जाना चाहिए। इसलिए गांधीजी कहा करते थे कि चरित्र की महानता बुद्धि की महानता से अधिक महत्वपूर्ण है। वास्तव में गांधीजी द्वारा नैतिकता पर इतना अधिक बल दिया गया है कि गाँधीवाद राजनीतिक से अधिक एक नैतिक दर्शन प्रतीत होता है। गांधीजी का विचार था कि श्रेष्ठ साधनों को उचित और सफलतापूर्ण ढंग से अपनाने के लिए आत्मा की शुद्धि की आवश्यकता होती है और आत्मा की इस शुद्धि हेतु वे समय-समय पर व्रत, आदि क्रिया करते थे।
सत्याग्रह - गांधीजी की सत्य और अहिंसा, साध्य और साधन की श्रेष्ठता तथा व्यक्ति की नैतिक पवित्रता में दृढ़ आस्था थी और अपने इन्हीं विश्वासों के आधार पर उन्होंने बुराई के प्रतिरोध के एक नये रास्ते की खोज की, जिसे सत्याग्रह कहा जाता है। स्वयं गांधी जी के शब्दों में, “अपने विरोधियों को दुखी बनाने की बजाय, स्वयं अपने पर दुःख डालकर सत्य की विजय प्राप्त करना ही सत्याग्रह है।" एक सत्याग्रही अपने प्रतिद्वन्दी से आध्यात्मिक सम्बन्ध स्थापित कर लेता है वह उसमें ऐसा विश्वास उत्पन्न कर देता है कि वह बिना अपने को नुकसान पहुँचाए उसको नुकसान नहीं पहुँचा सकता। सत्याग्रह तो सत्य की विजय हेतु किए जाने वाले आध्यात्मिक और नैतिक संघर्ष का नाम है।
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